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सुख का सूरज!!

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 सुबह सूरज और सन्नाटा.... इन तीन शब्दों का संयोग और रच जाता है सारिका में 'शब्दों का सार'। सुबह जब सूर्य अपनी लालिमा बिखेर रहा होता है तब उन्नीदें से सन्नाटें में सौंदर्य बड़ी सादगी से अपनी छँटा बिखेर रहा होता है, और फैलती है चारो तरफ उस हल्की हल्की सूर्य ऊष्मा की ऊर्जा.... ये अद्भुत शक्ति होती है अपने अंदर झांकने की, पहचानने की, अपने आप से बातें करने की,, तब उस पल बाहरी दुनिया से मन मानो कट जाता है ,अपने अलावा कोई और नहीं होता, सिवाय एक उसके!  जिसमें हम स्वयं को समाहित कर चुके होते हैं!! और तब ऊर्जा प्राप्ति क्रम में सूर्योदय के इस प्रथम स्पर्श से नकारात्मकता छंटने लगती है और प्रत्येक गहरी सांस सकारात्मक करती जाती है।    जपा कुसुम संकाशं काश्यपेयं महा द्दुतिम। तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोअस्मि दिवाकरम्।।

मत करो भूल, पछताओगे!

 शीर्षक:--"मत करो भूल, पछताओगे"  प्रत्येक साँस पर महामारी से भारी प्रतिपल व्याकुल मन आशंकित और विचलित! शवों की बढ़ती गिनतियों से गुजरता आज अभी जीवित,और कल अचानक निर्जीव बनता तन!! श्वांस -श्वांस उधार मांगता कृत्रिम यंत्रो की  राह देखता। परिजन कलप रहे !दौड़-दौड़ अनुनय विनय में लगे!!  स्वजनों के वियोग का डर या स्वयं को सुरक्षित रखें की चेतना, टकरा रही स्वयं के ही अंतर्मन से। प्रार्थना का स्वरूप बदल गया, ईश्वर से पहले डॉक्टर के दर पर मत्था टिका गया, जागो मानव ! अब भी जागो!! दो गज की दूरी और मास्क मुख पर सम्भालो, मत करो भूल, पछताओगे,, अपने पीछे बेसहारा और अनाथ परिवारों को अपने कर जाओगे।।

सिनेमा ! हमारी विचारधारा का एक प्रवाह!!

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  फिल्में हमारे समाज का आईना होती है ये हम बचपन से सुनते आ रहे है, फिल्में, उपन्यास, कहानियां, लोक कथाएं, किवदन्तियां ,, ये सभी समाज के विभिन्न वर्गों से समय समय  पर निकल कर सामने आती हैं और हमारे  सामने हमारे ही सामाजिक रहन सहन, परिवेश और विचारधारा का एक आवरण सा खींच जाती है।  पीढ़ी दर पीढ़ी हम जो अपने परिवार, पूर्वजो द्वारा दी गयी शिक्षा और रिवाजो को जीते है उन्हें ही हम कहीं ना कहीं कहानियों के माध्यम से लोक कथाओं में पिरो कर तो कभी किवदंतियों के मध्यम से आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करते जाते है।। आधुनिक समय मे इसमें प्रमुख भूमिका सिनेमा ने निभाई ,  हम सभी ये अच्छी तरह जानते है कि   पढ़ी हुई चीजो से कहीं ज्यादा देखी हुई चीजें हमारे  दिल और दिमाग पर ज्यादा असर डालती है,, शब्दो मे लिखी हुई बाते जहां दिमाग पर बोझ सी प्रतीत  होती है वहीं कथाक्रम में सुनियोजित तरीके से मनोरन्जन द्वारा कही ज्ञान वर्धक बाते हमारे दिल और दिमाग को उस दिशा में जागरूक बनने की अभिरुचि बढ़ाती है।  यही कारण है कि, पारिवारिक एकता को दर्शाने वाली फिल्में जहां परिवार के प्रति कर्तव्य भावना भरने में सहायक रही वहीं स्वतन्

अनुभव के शहर में!!

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 विश्व कविता दिवस, शीर्षक:- अनुभव के शहर में!! कविताये ढूंढती है मन के मुकाम! जागती है शब्दों में, घूमती है विचारो के नगर में,, और विचरण के क्रम में रुकती जाती है यादों के हर उस चौराहे पर.... जिससे हो कर उम्र गुजरी होती है! अनुभव के शहर में, गलियों, मुंडेरों से झांकता कोई पुराना ख़्वाब आ खड़ा होता है सामने.... बह जाती है स्याही की धार में!  रंगने को कोरा अहसास!!

【ढेरों सुंदर परिधान! फिर फटीजींस ही क्यों बने आपकी पहचान!!】

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 आजकल लड़का हो या लड़की सभी फटे चिथड़े कपड़े पहनना "cool" मान रहे,,विदेशों में ऐसे फ़टे चिथड़े कपड़े शायद वो ही बच्चे पहनना ज्यादा पसंद करते होंगे जिन्हें गर्मी ज्यादा लगती होगी या फिर उन्हें स्किन एलर्जी होगी और खुजलाने में सुविधा ही मिलती होगी ! या फिर मम्मियों को बिल्कुल भी फुर्सत नही होगी और ऐसी हालत में! "किसी एक बच्चे ने फ़टी जींस को पहनने से हुई झेंप को मिटाने के लिये इसे दोस्तों के बीच फ़ैशन का नाम दे दिया होगा"।  किन्तु हमारे देश मे ऐसे कपड़े "comfertable"  "faishonable" "cool"  "wow" जैसी feeling भले ही देते हो,या ना देते हो,, किन्तु माता पिता बहुत ही गरीब है या देश का युवावर्ग सच मे बहुत बेरोजगार है, ये feeling जरूर देते हैं।  बच्चों! होली का त्योहार निकट  ही है!!  इस बार इन कपड़ो को होलिका दहन की अग्नि में स्वाहा कर दो।  क्योंकि गरीब से भी गरीब व्यक्ति, चाहे वह स्त्री हो, पुरुष हो,या बच्चा!,  वो सभी खुद का सामाजिक स्तर बनाये रखने के लिये " साफ़,और दुरुस्त कपड़े पहनना पसंद करता है। भले ही उसके कपड़े "नए" हो ना हो व

परिपूर्ण !!

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विषय:- नारी शीर्षक:- परिपूर्ण!! तेरी गोद मे महफूज़ सी गहरी नींद जो मै सो गई!  मैं नारी बन गयी!!  तेरे संग लड़ती झगड़ती खुशियां बांटती जो मैं पल गयी !  मैं नारी बन गयी!!   तेरे हाथ में मेरा हाथ और "मैं" से "हम" की एक परिभाषा जो मैं ओढ़ गयी! मैं नारी बन गयी!! मेरी कोंख में तू जो रच गया मातृत्व मुझमें भर गया! मैं नारी बन गयी!! प्रतिस्पर्धा! आगे रहूँ की पीछे चलूँ, दुविधा!छाया बनूँ की शरण मे रहूँ!!  बढ़ती दुनिया और हौसलों की बाते...  बस इतना जानती मैं !  तुम में ही लीन हो कर तुम मय जो हो गयी!!   तुम संग सब वचन निभाये "परिपूर्ण" हो गयी, चपल चँचल, धीर गम्भीर, सबल और प्रबल...  सृष्टि निर्मात्री मैं, और कभी विनाशक भी ना कोई रंज ना कोई संशय, दिल में उमंगों भरी तरंग.... मैं नारी थी! मैं नारी हूँ! मैं नारी ही रहूँगी!!

शिव अनन्त!!

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  मिर्ज़ापुर अति प्राचीन शहरों में से है,,मेरा ये शहर कई मायनो में अद्भुत है!  चाहे वो यहाँ की लेटलतीफ़ मस्तमौला प्रवृति हो, यहां की गंगा नदी और उसके किनारे पर बसा महिलाओं में प्रसिद्ध खूबसूरत बाज़ार हो,, नदी के किनारों पर बसे मंदिर और शाम को गंगा आरती, सब अद्भुत!! मिर्ज़ापुर की वादियों और मंदिरों से सजी खूबसूरत संस्कृति की बात हम फिर कभी करेंगे,, आज गुरुवार काफी ख़ास है क्योंकि आज शिवरात्रि भी है, शिव मेरे आराध्य देव! और शिव से जुड़ा प्रत्येक शब्द मेरे लिये अनमोल!! तो आज मिर्ज़ापुर की शिव बारात का वर्णन ना हो ऐसा कैसे!!! अभी-अभी मिर्ज़ापुर के अति प्राचीन, अति मान्यता प्राप्त, एवं सिद्ध मंदिर  "बुढेनाथ" से निकल कर शिवशंकर शम्भू भोले नाथ की अत्यंत ही मनभावन मनमोहक और शिव में लीन कर देने वाली बारात निकली मेरे ही घर के सामने से निकली ! शिव जी की बारात!!उसमे सजी पालकी में स्वयँ दिगम्बर स्वयम्भू विराजमान थे, प्रचलित मान्यताओं की माने तो कैलाश पर्वत से काशी जाने के दौरान माता पार्वती की जिद पर भोलेनाथ ने विश्वकर्मा  से गिरजापुर नामक स्थान बनाने का आदेश दिया था,,वर्तमान में वही स्थान

शिवाय तुमने मुझमें धूनी रमाई!!

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 पहन गेरुआ बाना जैसे सिंदूरी शाम मुस्कराई, विस्तृत गगन सी तेरी बाहें मानसरोवर सी नेत्रों की गहराई, निर्मल शांत और निश्छल..... प्रेम का अलख जगा कर,  शिवाय तुमने मुझमें धूनी रमाई।।        शिवाय त्वम मम् सर्वस्व                     🙏 शिव रात्रि महा पर्व की शुभ कामनाएँ

महिला दिवस की शुभकामनाये!💐💐

 आप सभी "प्यारी" महिलाये! जिन्होंने आशियाने को घर बनाया!! आप सभी "हौसलापसन्द" महिलाये! जिन्होने हाथ बढ़ा कर संबल बढ़ाया!! आप सभी "धरती" सी महिलाये! जिन्होंने सहनशीलता को अपना अस्त्र बनाया!! आप सभी "समंदर"सी महिलाये! जिन्होंने गृहणी शब्द का मान बढ़ाया!! आप सभी सबसे "खूबसूरत" महिलाये! जिन्होंने गर्भ में अपने श्री कृष्ण बसाया, स्वयं सीता का अक़्स निभाया!!        सौभाग्यशाली स्त्रियों!  आप सभी को महिला दिवस की!!   💐💐 ढ़ेरो ढ़ेरो शुभकामनाये💐💐

विशिष्टता के क्रम में अग्रणी महिलाएं!!

 परम्परा और रिवाजों के नाम पर  पीढ़ी दर पीढ़ी एक दूसरे का ही गला घोंटती महिलाएं , एक दूसरे  के ही स्वाभिमान को कुचल कर आगे बढ़ने की कोशिश करती महिलाएं,  अति विशिष्टता क्रम में अग्रणी साबित होने की इक्छुक अति महत्वकांछि महिलाएं, वर्ष में एक बार महिला दिवस पर सम्मानित होने की चाह में पूरा वर्ष बिताती महिलाएं, फूलों गुलदस्तों समारोहों में मुस्कुराती महिलाएं, पीछे छोड़ जाती है ढ़ेर सारा अवसाद, खुदगर्जी, और तनाव...... दरअसल वो ख़ुद को ही पहचानने से इनकार कर देती है "तमगा ए औरत" बनने के बाद, तारीफों, मनुहारों के दर्पण देख देख जब इतराने लगती हैं, भूल जाती है अपने ही असल आस्तित्व को और अहंकार के दर्प में खो देती है गृह लक्ष्मी सा स्वरूप.....  उसकी बगिया के प्यारे खूबसूरत नन्हे फूल,धँसती आँखों में जब बीमार सी नींद पूरी करते है  "बड़ी माँ" की गोद में....  नहीं जानती कितना अनमोल मातृत्व सुख खो देती है अपनी पहचान बाहर तलाशती महिलाएं, अहसास करती है तब उम्र पूरी बीत जाने के बाद  महज़ एक ख़बर सी बन रहा जाती है,,अख़बार के पन्नों पर, दिन गुजर जाने के बाद, भूल जाते है अप्सराओं को भी इंद्र यौवन