सिनेमा ! हमारी विचारधारा का एक प्रवाह!!


  फिल्में हमारे समाज का आईना होती है ये हम बचपन से सुनते आ रहे है, फिल्में, उपन्यास, कहानियां, लोक कथाएं, किवदन्तियां ,, ये सभी समाज के विभिन्न वर्गों से समय समय  पर निकल कर सामने आती हैं और हमारे  सामने हमारे ही सामाजिक रहन सहन, परिवेश और विचारधारा का एक आवरण सा खींच जाती है।

 पीढ़ी दर पीढ़ी हम जो अपने परिवार, पूर्वजो द्वारा दी गयी शिक्षा और रिवाजो को जीते है उन्हें ही हम कहीं ना कहीं कहानियों के माध्यम से लोक कथाओं में पिरो कर तो कभी किवदंतियों के मध्यम से आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करते जाते है।। आधुनिक समय मे इसमें प्रमुख भूमिका सिनेमा ने निभाई ,

 हम सभी ये अच्छी तरह जानते है कि 

 पढ़ी हुई चीजो से कहीं ज्यादा देखी हुई चीजें हमारे  दिल और दिमाग पर ज्यादा असर डालती है,, शब्दो मे लिखी हुई बाते जहां दिमाग पर बोझ सी प्रतीत  होती है वहीं कथाक्रम में सुनियोजित तरीके से मनोरन्जन द्वारा कही ज्ञान वर्धक बाते हमारे दिल और दिमाग को उस दिशा में जागरूक बनने की अभिरुचि बढ़ाती है।

 यही कारण है कि, पारिवारिक एकता को दर्शाने वाली फिल्में जहां परिवार के प्रति कर्तव्य भावना भरने में सहायक रही वहीं स्वतन्त्रता संग्राम में देश भक्ति की फिल्मों का  देश प्रेम के प्रति जोश भरने में ज्यादा योगदान रहा,,उसी तरह सामाजिक  भेदभाव,   राजनीतिक गतिविधियों  आदि से सम्बंधित अच्छी बुरी सभी व्यवस्थाओं और कुरीतियों  के प्रति जागरूकता में भी क्लास सिनेमा का बहुत योगदान रहा, कॉमर्सियल सिनेमा जहां एक ओर मनोरन्जन और व्यवसाय का सीधा माध्यम बना वहीं क्लास सिनेमा ने समाज में अव्यवस्थाओं की ओर करारा प्रहार किया,,

समय चाहे कोई सा भी रहा हो, फिल्मों के प्रति लोगो का रुझान हमेशा से बना रहा है, ज्यादा तर युवावर्ग की अभिरुचि इसमें ज्यादा रही,,, ना सिर्फ फिल्में बल्कि उनमे अभिनय करने वाले कलाकारों के प्रति युवा वर्ग में हमेशा से एक क्रेज़ से रहता है उन्हें कॉपी करने की उत्कंठा और उन जैसा दिखने के लिये युवा वर्ग सदैव से आकर्षित रहता है

लेकिन उन्हें अपने में आत्मसात करते वक्त युवा वर्ग पर्दे के पीछे के अंतर्द्वंद को पर्दे पर दिखते चमकदमक के सामने अनदेखा कर देता है, लेकिन एक्टर बनने की चाह उन कैसा जीवन जीने की चाह रखने वाले युवावर्ग को उसके पीछे की हताशा, कॉम्पिटिशन, और दौड़ में पीछे छूट जाने के डर से उपजा तनाव नही दिख पाता। 

वैसे तो कोई ऐसा क्षेत्र नही जहां कॉम्पीटीशन नही या जहां एक दूसरे का शोषण नही होता हो, लेकिन फिर भी इस चमक दमक की दुनिया मे पैर जमाये रखने के लिये बहुत ज्यादा धर्य और मजबूत इरादों की जरूरत होती है।

बावजूद इनके भी आज फिल्मी जगत में कलाकारों में आ रहे विचारो के बदलाव काफी महत्वपूर्ण दिखने लगे है, बहुत से पूर्णत स्थापित कलाकार अब आगे बढ़ कर देश के कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बोलने लगे है,अपनी राय रखने लगे है,संकट के दौर मे सहयोग और सहारा देने लगे है जो एक सार्थक दिशा की ओर इशारा करता नजर आ रहा।

अनन्तः हम समझ सकते है कि फिल्में सच ही हमारे मनःस्तिथि को समझने का एक सशक्त माध्यम सदैव से रही है,, जरूरत है सिर्फ एक हद तक किसी भी माध्यम को तलाशने की।।

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