सुख का सूरज!!
सुबह सूरज और सन्नाटा.... इन तीन शब्दों का संयोग और रच जाता है सारिका में 'शब्दों का सार'। सुबह जब सूर्य अपनी लालिमा बिखेर रहा होता है तब उन्नीदें से सन्नाटें में सौंदर्य बड़ी सादगी से अपनी छँटा बिखेर रहा होता है, और फैलती है चारो तरफ उस हल्की हल्की सूर्य ऊष्मा की ऊर्जा.... ये अद्भुत शक्ति होती है अपने अंदर झांकने की, पहचानने की, अपने आप से बातें करने की,, तब उस पल बाहरी दुनिया से मन मानो कट जाता है ,अपने अलावा कोई और नहीं होता, सिवाय एक उसके! जिसमें हम स्वयं को समाहित कर चुके होते हैं!! और तब ऊर्जा प्राप्ति क्रम में सूर्योदय के इस प्रथम स्पर्श से नकारात्मकता छंटने लगती है और प्रत्येक गहरी सांस सकारात्मक करती जाती है। जपा कुसुम संकाशं काश्यपेयं महा द्दुतिम। तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोअस्मि दिवाकरम्।।