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Showing posts from April, 2021

सुख का सूरज!!

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 सुबह सूरज और सन्नाटा.... इन तीन शब्दों का संयोग और रच जाता है सारिका में 'शब्दों का सार'। सुबह जब सूर्य अपनी लालिमा बिखेर रहा होता है तब उन्नीदें से सन्नाटें में सौंदर्य बड़ी सादगी से अपनी छँटा बिखेर रहा होता है, और फैलती है चारो तरफ उस हल्की हल्की सूर्य ऊष्मा की ऊर्जा.... ये अद्भुत शक्ति होती है अपने अंदर झांकने की, पहचानने की, अपने आप से बातें करने की,, तब उस पल बाहरी दुनिया से मन मानो कट जाता है ,अपने अलावा कोई और नहीं होता, सिवाय एक उसके!  जिसमें हम स्वयं को समाहित कर चुके होते हैं!! और तब ऊर्जा प्राप्ति क्रम में सूर्योदय के इस प्रथम स्पर्श से नकारात्मकता छंटने लगती है और प्रत्येक गहरी सांस सकारात्मक करती जाती है।    जपा कुसुम संकाशं काश्यपेयं महा द्दुतिम। तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोअस्मि दिवाकरम्।।

मत करो भूल, पछताओगे!

 शीर्षक:--"मत करो भूल, पछताओगे"  प्रत्येक साँस पर महामारी से भारी प्रतिपल व्याकुल मन आशंकित और विचलित! शवों की बढ़ती गिनतियों से गुजरता आज अभी जीवित,और कल अचानक निर्जीव बनता तन!! श्वांस -श्वांस उधार मांगता कृत्रिम यंत्रो की  राह देखता। परिजन कलप रहे !दौड़-दौड़ अनुनय विनय में लगे!!  स्वजनों के वियोग का डर या स्वयं को सुरक्षित रखें की चेतना, टकरा रही स्वयं के ही अंतर्मन से। प्रार्थना का स्वरूप बदल गया, ईश्वर से पहले डॉक्टर के दर पर मत्था टिका गया, जागो मानव ! अब भी जागो!! दो गज की दूरी और मास्क मुख पर सम्भालो, मत करो भूल, पछताओगे,, अपने पीछे बेसहारा और अनाथ परिवारों को अपने कर जाओगे।।

सिनेमा ! हमारी विचारधारा का एक प्रवाह!!

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  फिल्में हमारे समाज का आईना होती है ये हम बचपन से सुनते आ रहे है, फिल्में, उपन्यास, कहानियां, लोक कथाएं, किवदन्तियां ,, ये सभी समाज के विभिन्न वर्गों से समय समय  पर निकल कर सामने आती हैं और हमारे  सामने हमारे ही सामाजिक रहन सहन, परिवेश और विचारधारा का एक आवरण सा खींच जाती है।  पीढ़ी दर पीढ़ी हम जो अपने परिवार, पूर्वजो द्वारा दी गयी शिक्षा और रिवाजो को जीते है उन्हें ही हम कहीं ना कहीं कहानियों के माध्यम से लोक कथाओं में पिरो कर तो कभी किवदंतियों के मध्यम से आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करते जाते है।। आधुनिक समय मे इसमें प्रमुख भूमिका सिनेमा ने निभाई ,  हम सभी ये अच्छी तरह जानते है कि   पढ़ी हुई चीजो से कहीं ज्यादा देखी हुई चीजें हमारे  दिल और दिमाग पर ज्यादा असर डालती है,, शब्दो मे लिखी हुई बाते जहां दिमाग पर बोझ सी प्रतीत  होती है वहीं कथाक्रम में सुनियोजित तरीके से मनोरन्जन द्वारा कही ज्ञान वर्धक बाते हमारे दिल और दिमाग को उस दिशा में जागरूक बनने की अभिरुचि बढ़ाती है।  यही कारण है कि, पारिवारिक एकता को दर्शाने वाली फिल्में जहां परिवार के प्रति कर्तव्य भावना भरने में सहायक रही वहीं स्वतन्