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Showing posts from November, 2020

【विंध्य मानक क्षेत्र अमरावती का चौराहा】

 गौरवशाली गुरुवार... 【विंध्य मानक क्षेत्र अमरावती का चौराहा】 उत्तर प्रदेश में स्तिथ मिर्ज़ापुर शहर जितना प्रसिद्ध अपने कालीन व्यवसाय और पीतल के कारोबार से है उससे कहीं ज्यादा इस शहर को माता विंध्यवासिनी के धाम से सम्बध्द कर जाना जाता है,,इस त्रिकोणीय शक्ति पीठ और विंध्य क्षेत्र की महत्वत्ता अपने आप में अद्भुत है।   इतना ही नही, माना जाता है की देश का मानक समय भी माँ विंध्यवासिनी के धाम से तय होता है,, पुराणों में भी इस तथ्य का जिक्र है की लंकापति रावण ने भी विंध्य क्षेत्र को मानक समय स्थल मान कर यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी और इसी मानक को समय के रूप में चिन्हित किया था! विंध्यवासिनी धाम के उत्तर तरफ स्थित प्राचीन विन्ध्येश्वर महादेव मंदिर आज भी भक्तों में प्रसिद्ध है!! लगभग 32.8 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले विश्व के सबसे सातवें सबसे बड़े देश भारत के मानक समय भारतीय स्टैंडर्ड टाइम का, वर्ष 2007 में, भूगोलविद नई दिल्ली के सौजन्य से विंध्य क्षेत्र के पूरे सर्वक्षण के बाद मिर्ज़ापुर-इलाहाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर विन्धयाचल स्थित अमरावती चौराहा के पश्चिम तरफ़ नई दिल्ली के सौजन्य से मान

ईश्वर-ख़ुदा****

हर दीपावली वो मायके आती थी, और इन तेरह-चौदह वर्षो में ऐसा कभी नही हुआ की वो मुझसे मिलने ना आये। आती भी क्यों नही,  मैं उसकी मसीहा जो थी! ऐसा उसका कहना था.... हर बार की तरह इस बार भी वो आयी और पूरा दिन साथ बिता,  मेरे समझाने पर शाम को अनमने दिल से चली गयी, उसके अब्बू का हाल-फिलहाल इंतकाल हुआ था और उसे अपनी अम्मी के साथ भी वक्त बिताना ही चाहिए, किन्तु कुछ कड़वे अनुभव उसे  मायके से दिल ना जोड़ने देते थे!  सीढ़ियों से उसे उतरते देखती मैं भी ना जाने कितनी पीछे चली गयी.... पूरे कॉन्फिडेंस से अपने बेटे को देश का भावी क्रिकेटर बताते और प्रतिष्ठित संस्थान में चल रही उसकी ट्रेनिग के यू ट्यूब वीडियो दिखाती ये वही समायरा थी जो बिल्कुल नकारात्मक बातें करती, चिड़चिड़ी सी किंकर्तव्य विमूढ़ हताश माँ के रूप में मुझे मिली थी एक ब्यूटी सलून में , अपनी बारी का इंतजार करते हुए हम दोनो की मुलाकात हुई थी,  और ना जाने क्यों, किस आंतरिक प्रेरणा से वशीभूत मैं उसे अपने साथ घर चलने का निमंत्रण दे बैठी जिसे उसने सहज ही मान भी लिया,,,, कोई जान पहचान नही थी, नाम तक नही पूछा था हम दोनो ने तब एक दूसरे का। वो पहली मुलाकात थी

【इस प्रेम के कई रंग....】

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ईश्वर ने जीवन की सभी संवेदनाए मनुष्य में समाहित की है, जिसमे सबसे गहरी अनुभूति प्रेम की है,बिन इसके हम सब अधूरे, प्यार की परिभाषा प्रति व्यक्ति अलग-अलग है, किसी मे ये संवेदना कम और किसी में बहुत ज्यादा।  इस प्रेम के कई रंग..... 【आकर्षण, राग,आसक्ति, अनुराग】 " आकर्षण " --  प्रेम का पहला चरण मात्र बाह्र रूप ,सौंदर्य, गुण, प्रतिष्ठा या व्यक्तित्व से प्रभावित। "राग" -- आकर्षण से सामीप्य की चाह, सामीप्य का स्वाद तथा और और और प्राप्ति  की प्रबल कामना से जुड़ा निरन्तर प्रयास। दूर होने के कयास मात्र से पीड़ा।। "आसक्ति"--राग  की अत्यधिक प्रबलता मोह का कारण,,,मोह प्रेम का वो भाव जो मन को कमज़ोर बनाता है।" प्रिय से दूर होने का यही भय  "आसक्ति" में परिवर्तित हो जाता है। आसक्ति राग या लगाव की वह स्तिथि जिसमें मोह का बन्धन इतना मजबूत होता जाता है की सही गलत, गुण दोष की विवेचनात्मक क्षमता गौण हो जाती है। जीवन के वास्तविक उद्देश्य  का स्वरूप ही बदल जाता है मार्ग बदल जाता है,,, ना चाह कर भी फिर-फिर वही करता है जिसमें उसे आनन्द की प्राप्ति हो, प्रिय या प्रिय वस्त

**ऊँघती सुबह का जागता चाँद**

 नवंबर की दूसरी तारीख़ और सुबह मौसम जरा सर्द था,मेरी पश्चिम तरफ चाँद अभी सोया नही और सूरज भी अभी जागा ना था। उधर रात भर अकेला ठिठुरता आसमानी टॉर्च चौकीदारी करता रहा,इधर सफ़ेद रुई की रजाई में लिपटा सूरज तान के सोता रहा। चाँद का पारा हाई था....सुबह के साढे पांच-छह बजने को है और सूरज अपनी ड्यूटी से नदारद है! कुँवारे और इश्क़ के मारे सभी, सारी रात टार्च की रौशनी में अपना चाँद तलाशते रहे, और शादीशुदा और बालबच्चेदार थोड़ी और देर से पौ फ़टे की गुहार मन ही मन करुणासिन्धु से लगाते आंखे मूंदे आलस्य में पड़े रहे,,,इक हम जैसे भी इन सब की गवाही बने कान तक शॉल ढके बेमन से ही सही सेहत बनाये रखने को टहलने छत पर चढ़ते मिले.... लो आदिदेव देव की सवारी आयी,मैंने घड़ी से, ये घड़ी मिलायी सवा छह बजने को थे,सूरज आँखे मलता और चाँद आँखे दिखाता ठीक आमने सामने था.... उलाहने देता और चिड़चिड़ाता चाँद! अरुण तुम्हारे ही ठाठ है ,जाड़े में साढ़े छह बजे भी नींद से आँखे लाल है!!और गर्मियों में पाँच बजे सुबह से शाम छह बजे तक दहकते हो और ठंडी में इसके उलट रजाई में दुबके नज़र आते हो ??? शिकायत करूंगा त्रिलोकी से तुम्हारी दायें बाएं जटाओं