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संबल

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 ठंडी मोहक हवाएँ बरसते बादल और झूमती पीपल की शाखाये,  मुझे अपनी ओर खींचने को प्रकृति का इतना निमंत्रण काफी है ,, जल का कोई भी स्रोत हो मुझे लुभावना लगता है, समंदर, नदी, तालाब, झरने, बहता पानी, सब मेरे मन को छूते है,  यहां तक ​​की यात्रा के क्षणों में सड़क के किनारे के साथ के साथ पानी से भरे धान के खेत और गड्ढे भी मुझे आकर्षित करते हैं, हरे-हरे खेत पानी से भरे उनके किनारे जैसे मेरे साथ साथ मन ही मन मे दौड़ते, वर्षा ऋतु में में बहुधा दिल करता की बस गाड़ी की गति रुकवा कर उतर जाऊँ, और दौड़ कर पहुँच जाऊँ पानी से भरे हरे हरे मखमली कालीन पर जोर- जोर से कूदते कूदते पानी के उन गड्ढों को छपाक- छपाक की आवाज़ भर दूँ। । ।  मे मन की ये इच्छा मन मे ही रह जाती है…।  बचपन मे पापा और अब फिर पतिदेव नहीं करने देते, शायद दोनो के ह्रदय में मेरी सुरक्षा का दायित्व मेरी खुशी से ज्यादा महत्वपूर्ण था और होना भी चाहिए, हम जिनसे जुड़े होते हैं उनकी सुरक्षा, उनकी देखभाल ही हमारा पहला दायित्व होना चाहिए।   पर मेरे ससुर जी ......  वह कभी नहीं रोकते थे क्योंकि वह भी मेरी ही तरह जलप्रेमी, प्रकृति प्रेमी थे, उन्होंने ह