परिपूर्ण !!


विषय:- नारी

शीर्षक:- परिपूर्ण!!


तेरी गोद मे महफूज़ सी गहरी नींद जो मै सो गई!

 मैं नारी बन गयी!!

 तेरे संग लड़ती झगड़ती खुशियां बांटती जो मैं पल गयी !

 मैं नारी बन गयी!!

  तेरे हाथ में मेरा हाथ और "मैं" से "हम" की एक परिभाषा जो मैं ओढ़ गयी!

मैं नारी बन गयी!!

मेरी कोंख में तू जो रच गया मातृत्व मुझमें भर गया!

मैं नारी बन गयी!!

प्रतिस्पर्धा! आगे रहूँ की पीछे चलूँ,

दुविधा!छाया बनूँ की शरण मे रहूँ!!

 बढ़ती दुनिया और हौसलों की बाते...

 बस इतना जानती मैं !

 तुम में ही लीन हो कर तुम मय जो हो गयी!!

  तुम संग सब वचन निभाये "परिपूर्ण" हो गयी,

चपल चँचल, धीर गम्भीर, सबल और प्रबल...

 सृष्टि निर्मात्री मैं, और कभी विनाशक भी

ना कोई रंज ना कोई संशय, दिल में उमंगों भरी तरंग....

मैं नारी थी! मैं नारी हूँ! मैं नारी ही रहूँगी!!




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