ईश्वर की अनमोल कृति हम!!

 गायों के झुंड एक दूसरे में गुंथे हुए चिपके एक दूसरे से गर्मी का अहसास पाते,छतों पर कोने कोने में बैठे बंदरों को ठंड से सिकुड़े, सहमे से पौ फ़टने और धुप निकलने का इंतजार करते हुए,,सारी रात कुत्तो को डरावनी रोनी पुकार से वातावरण सहमाते हुए, इन बेबस मूक जानवरो को जब देखती हूँ, पराश्रित जीवोँ को प्रकृति और मानवता दोनो की मार पड़ते महसूस करती हूँ!

 तो बरबस ये ध्यान आता है की ईश्वर ने मनुष्य को अपनी सभी कीर्तियों में सबसे ज्यादा सुविधा और शक्ति सामर्थ्य दिया सबसे ज्यादा बुद्धि भावनाएं दी! सर्वगुण सम्पन्न बनाया!!

 प्रत्येक क्रिया के प्रति प्रतिक्रिया की संवेदना में अग्रणीय मनुष्य !

  स्वाद, गन्ध, स्पर्श,दृष्टि, श्रवण, जैसी इंद्रियों के अलावा छठी इन्द्रिय के रूप में मानसिक रूप से भविष्य का आभास करने की तीक्ष्ण संवेदनशील क्षमता भी मनुष्य में सर्वश्रेष्ठ है।


किन्तु विकास के क्रम में हम स्वयं को ही ईश्वर समझ बैठे!, आबादी बढ़ाते  हुए हमने  अतिक्रमण को अपना अधिकार माना!!, रिहायशी जरूरतों को पूरा करने के क्रम में जंगलो को काटते गए, जिन जंगलो में जानवर सुरक्षित थे उनके भी अधिकारों का हनन किया,और वे ही जब भर्मित हो अपने सुरक्षित दायरे से हमारे इलाके में आये हमने पत्थरों, डंडों और गोलियों से उन्हें रौंदने में भी कमी नही की।

जिन्हें हमने पालतू पशु रूप में इस्तमाल किया उनको भी ठंडी गर्मी में सड़को पर खुला छोड़ दिया,, खाने को पॉलीथिन में लिपटे कचरे, और आराम करने को नालियों के किनारे ही उनके हिस्से में आये।


थोड़ा ठहरिए,!!

अपने लिये बहुत इकट्ठा कर लिया अब ईश्वर की इन निरीह कृतियों पर भी एक नजर दीजिये,,, और कुछ नही कर सकते  हम तो,!

शीत ऋतु की ठंड में अलाव, और जेठ की तपती दोपहरी में पानी और थोड़े से छांव की व्यवस्था कर सके इतना सामर्थ्य तो रख ही सकते है !! 

तमाम आंदोलनों और धरनों के लिये समूह बना सकते है हम! तमाम सामाजिक धार्मिक कार्यो के लिये धन खर्च कर सकते है हम!!

तो थोड़ा सा धन, थोड़ा से कीमती समय और ढेर सारा मनोबल इस प्रयास में क्यों नही!!!




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