प्रेम!प्यार!!इश्क़!!!


  प्रेम, प्यार, इश्क! वैसे तो सदियों से ये विषय मानव मन में एक अनोखी उत्कंठा और मधुरता बरसाता आ रहा है, और आदिकाल से मनुष्य प्रेम की अनुभूति और अहसास को अपने प्रियतम से बांटने के अनोखे-अनोखे रास्ते तलाशता आ रहा, जिसके अनेको उदाहरण ऐतिहासिक गुफाओं में मिले भित्तिचित्रों , तमाम ग्रन्थों, उपन्यासों, और अनेको अनेको प्रकार के अन्य सन्देश माध्यमों द्वारा समय-समय पर हस्तांतरित होते रहे है।

समय का चक्र चलता रहा है पौराणिकता से आधुनिकता की तरफ कदम बढ़ाता इंसान मानवीय, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और वैज्ञानिक प्रत्येक दिशा में प्रगति और बदलाव लाता रहा है अनेक उपलब्धियां पाता रहा है, किन्तु एक चीज जो तब से ले कर आज तक नही बदली, वह है "प्रेम" और "प्रेम से जुड़ी परिभाषा" "प्रेम से जुड़ा प्रत्येक छोटा से छोटा अहसास"।

भारतीय पुराणों ग्रन्थों में प्रेम के पखवाड़े को "मदनोत्सव" के नाम से जाना जाता था,, 'मदन' का  शाब्दिक अर्थ प्रेम और उत्सव का अर्थ त्योहार से लिया जाता है अर्थात "प्रेम का त्योहार" , प्रेम पखवाड़ा जो की भारतीय परम्परानुसार रंगों के त्योहार होली के साप्ताहिक अवसर पर मनाया जाता था और रंगों ,फूलों, खुशबुओं आदि के माध्यम से प्रियतम को प्रेम की भावना अभिव्यक्त की जाती थी जिसका उल्लेख हम कालिदास जैसे महाकवियों के काव्य रचनाओं में पढ़ते आ रहे है। रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाओं में भी प्रेम की सुखद अनुभूति उनकी कहानियों में झलक दिखलाती रही है,

आज समय बदल गया है और पाश्चात्य शैली के अनुकरण में "मदनोत्सव" कब "वैलेंटाइन डे" में बदल गया और प्रेमाभिव्यक्ति "प्रपोज़" शब्द में परिणत हो गयी इसका पता स्वयं हम भारतीयों को भी नही हुआ,

अब प्रेम शब्द की पवित्रता और उसके मायने बहुत बदल गए है पाश्चात्य अनुकरण ने प्रेम को गर्लफ्रैंड बॉय फ्रेंड तक सीमित कर दिया, प्रेम की परिणीति विवाह ना हो कर 'लिव इन रिलेशन' तक सिमटती जा रही,, जितनी तेजी से किसी के प्रति अनुराग और प्यार की भावना जगती है उतनी ही तेजी से वह उन्माद में बदलती है और पुनः ब्रेकअप जैसे एक और आधुनिक शब्द के रूप में विलीन भी हो जाती है,,

कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है की ढाई अक्षर में सिमटा हुआ ये प्रेम या प्यार शब्द इतना साधारण या खोखला नही होना चाहिए जिसकी पृष्टभूमि सिर्फ उन्माद या ब्रेकअप तक बनी रहे।


यदि किसी को कोई पसन्द करता है या करती है,, तो सबसे पहले तो ये सुनिश्चित करें की वह दूसरा पक्ष भी आपकी तरफ आकर्षित है और आपको ले कर उतनी ही शिद्दत और गहरी भावना रखता है जितनी की आप उसके प्रति।


यदि हाँ ,तब भी प्रेम की भावना को अकस्मात प्रियतम या प्रेयसी के समक्ष नही प्रस्तुत करते,, बल्कि प्रेम का उद्गार छोटे-छोटे चरणों में सामने आना चाहिए, कुछ छोटे-छोटे मदद के क्षण जो दिल पर छाप छोड़ जाए, शब्दों की गरिमा, व्यवहार का सन्तुलन,  और सबसे बड़ी बात अपने आचरण में इतनी शालीनता हो की प्रेयसी कभी भी स्वयं को असुरक्षित ना समझे। और यहीं से शुरू हो अपनी भावनाओ को व्यक्त करने की प्यारी-प्यारी प्रक्रियाएं,, जैसे खास अवसरों पर उसके मनपसन्द फूल देना,, मनपसन्द कार्यों को साथ करना, लंच, डिनर इत्यादि पर ले जाना,, सुविधानुसार तोहफ़े इत्यादि के साथ-साथ ही बेहतर स्तर का समय बिताना,, अच्छे पलों को कैद करने के हर अंदाज को प्यार से जिये,, सबसे बड़ी बात की जिससे प्यार करते है उस पर हावी होने की कोशिश या एक तरफ़ा प्यार को सफल बनाने की चाह रखने की बजाय दिल से दिल मिले,,

वैसे तो ये पाश्चात्य शब्द "प्रपोज़'  अपने आप में एक अजीब सा शब्द है जो प्रेम कम अनुबंध ज्यादा दर्शाता है,, किन्तु फिर भी आधुनिकतम समय की मांग इन शब्दो के साथ ही शुरू होती है,, और प्रेम अब अभी व्यक्त करने से ज्यादा कमिटमेंट शब्द के ज्यादा निकटम दिखने लगा है।

 

यदि प्रेम की भावना सच्ची है तो जिससे प्यार हो उसके साथ उसके हर अच्छे समय को दिल से स्वीकार करना और उसकी खुशी में खुश होना तथा उसके दुख और कठिनाई के हर संघर्षमय पल में बिना जताए बिना शब्दों द्वारा प्रकट किये हाथ थाम कर हर वक्त मौजूद रहना भी प्रपोज़ करने का सबसे अद्भुत और विश्वसनीय तरीका है।  


सबसे अहम और चिंतनशील वक्तव्य ये है की सबसे पहले अपनी आत्म विवेचना करें,, बार-बार ख़ुद को ये सोचने समझने और जानने का मौका ख़ुद से दें की क्या आपके दिल में किसी के प्रति प्रेम की सच्ची भावना जन्म ले रही है ,, क्या ये मात्र आकर्षण और दैहिक लोलुपता से ऊपर हट कर समर्पण की पूर्ण कामना है,, यदि आपके प्रत्येक प्रश्न का उत्तर हाँ में मिलता है तभी प्रेम के दूसरे कदम को आगे बढ़ाना ही विश्वसनीय प्रेम की परिणीति होगी और वही प्रपोज़ सच्चा होगा।

 सर्वप्रथम तो सबसे पहले  मन से डर को निकलना होगा की पहल मैं करूँ या सामने वाले को करने दूँ,,


इसके अलावा किसी और को माध्यम बना कर सन्देशा भिजवाने की बजाय खुद पर भरोसा रख कर स्वयं से आगे बढ़ने की हिम्मत करनी चाहिए,,


यदि किसी कारण वश आप अस्वीकृत भी किये जाते है तो इनमे भी दिल टूट गया और देवदास जैसा हारे हुए प्रेमी! अथवा नकारे गए तो आक्रमक हो कर बदले की भावना से भरा विकृत रूप ले लिया!!ऐसे बचकाने और दुरह बर्ताव से बचने की भरसक कोशिश करनी चाहिए।


जीवन बहुत बेशकीमती है और हमे ईश्वर द्वारा दी गयी इस अमूल्य निधि के लिये ईश्वर का आभार व्यक्त करना चाहिए अतः अस्वीकृत होने की स्तिथि में निराश नही होना चाहिए और जबरदस्ती भी नही करना चाहिए।

अंत में संक्षिप्त शब्दो में लिखें तो प्रेम एक ऐसी भावना है जो ना तो दिखावे में ना ही प्रलोभन में यकीन रखती है ना ही जबर्दस्ती दिलों में जागृत की जा सकती है अतः प्रेम की अभिव्यक्ति या प्रपोज़ करने के माध्यम भी दिल से किये और दिल से जुड़े ही होने चाहिए,, प्यार की अभिव्यक्ति के लिये जो भी करें जैसा भी करें उसमे एक दूसरे के लिये आदर ,सम्मान और सच्चाई जरूर हो,,


प्रेम महज भावना नही प्रेम इश्वरीय वरदान है! जो सिर्फ मनुष्यों को ही प्रचुर मिला है, हमें प्रेम की विश्वसनीयता बनाये रख कर ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए।।


 


  


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