अटल सत्य
विश्वास या तो है या तो नही,
प्यार या तो है या तो नही,,
धैर्य की अंतिम सीमा अधीरता,
क्रोध का आखिरी चरण विध्वंश....
स्तिथि बीच की कहीं, दरअसल होती ही नही।
एक पल में टूटता अटूट विश्वास,
एक बन्धन तोड़ता वर्षो का साथ,,
संयम अपना खोते जहाँ से हम,
वहीं से शुरू होती, दिशाहीनता की पहली शुरुआत।
विश्वास, संयम ,प्रेम की परकाष्ठता समर्पण में ही क्यों....
फिर समर्पण सर्वस्व का, स्वयं में ही शंकित क्यों।
भ्रम "मेरा है" का इतना क्यों,
भ्रम "समाप्ति" का भी आखिर क्यों??
तकदीर का लिखा....
'जो मेरा है' ,मेरे लिया है बना
मुझ तक लौट आना ही है,
और जो ना आया,
वो मेरा था ही नही....
ये अटल सत्य स्वीकार्य क्यों कर ना हो।।
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