अन्तस्
देर नही हुई अभी आओ हम साथ चले,
दूर कुछ तुम, दूर कुछ हम की बस चुपचाप चले,
दहकते सूर्य की लालिमा साँझ के आगोश में ना ढल जाए,
रात की कालिमा अहसास ना निगल जाय,
की आओ एक बार फिर हम सँवर जाए,
जीवन संध्या के तीसरे पहर ढलने से पहले साँझ को प्रणय निवेदन हम कर जाए,
की खाली है अन्तस्,
थोड़ा तुम थोड़ा हम भर जाएँ।।
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