कोई कोना सुकून का

शब्द लेखनी के जाने कहाँ छिप से गए है मानो कागज़ पर उतरने से इनकार कर गए हैं,
लॉक डाउन की सड़कों सी वीरान है कविता की डायरी आजकल,
इंसानों की तरह ही अल्फ़ाज़ भी मन के घरोंदों में कैद हो गए हैं,
ढूंढती हूँ कोई कोना सुकून भरा घर मे ही कहीं,
ह्रदय पटल पर उतार सकूँ विचारों के झंझावात जहां,
हालात कुछ इस तरह दिखे की,
 हर कोई छोटा सा कोना तलाशता मिल रहा...
 खुद को थोड़ी देर अजनबी करार दे सके रिश्तों की भीड़ से यहाँ।।

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