कल आज और कल के बीच से

अचानक मन का कोना पीछे भाग रहा
  बहुत पीछे और पीछे "नब्बे"में जाग रहा
 जहाँ नेशनल और zee tv तक झाँक रहा,     
  स्कूल से घर और कॉलेज से ट्यूशन जान रहा
  गलियारे में फिक्स टेलीफोन के तार और 
  कमरे तक एक्सटेंशन लाने पर सौ सवाल
 अठारहवें में पहुँचती बेटी और पिता के माथे पर पड़ते बल का बवाल,
 ऊँचा घराना और बेटी की विदाई
 इतने के बीच ही थी वो दुनिया समायी
 "आज" में लौट जब आयी हूँ हाथों में सेलफोन असँख्य नम्बरों की लिस्ट भी साथ लायी हूँ
और साथ आया है अदृश्य एक उन्माद
अपनों से दूर, पर मिलों दूर का साथ,
अजनबी से प्यार और रिश्तोंकाउपहास
            "फेमिनिस्टों  से माफ़ी"
 पर, पल्लू ने बहुत बचाया
जब तक सिर पर वो आशीर्वाद की तरह फ़हराया
 बड़ी सी बिंदी जब तक जगमगाई
  गैरों से मर्यादा निभाई
  बिंदी का आकार छोटा हो गया,
  साथ ही दुपट्टा भी कहीं खो गया
और खो गया माँ बेटी के बीच का प्यार जब एक  सी ड्रेस पर विस्तृत हो गया ऑन लाइन कारोबार
 ना जाने कितनी शैलजा मिट्टी हो गयी
और असंख्य है अभी कतार में....

"मैं" और मेरे जैसी कई,
रोज गुज़रती हैं ....
         नब्बे और आज के बीच से।।

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