सुनहरा ज्ञान

डिग्रियों में बाँधते क्यों ज्ञान को
प्रत्येक पृष्ठ पर काले अक्षरों में सुनहरा ज्ञान बिखरा है,
किताबी ज्ञान को सम्पूर्णता मानते,
व्यवहारिक ज्ञान के बगैर सब अधूरा मगर,
सम्पदा पूर्वजो की, अहंकार का क्यों बने माध्यम, उनसे इतर सिर्फ अपने नाम से क्यों ना अपना वजूद तलाश ले हम,
वर ढूंढने निकले जो पुत्री के लिये....
बंगलो और प्रतिष्ठानों से नही, व्यक्तित्व के आधार पर पहचान सके,
कुंडलिया मिले ना मिले, IQ लेबल अवश्य जांच ले,
आँगन की पौध को जो ना सींच सके  क्या होगा वो भविष्य का प्रबंधन कर्ता,

वधु चयन में सौंदर्य को नही विचारों को संस्कारो का आधार मानिये,
धैर्य, बुद्धिमता गुण हो जिसमे, नीव गृहस्थी की सदृढ़ उसी से रहेगी एक बार पुनः विचार लें,
सीता सी पत्नी तलाश रहे, राम को तो खुद में पहले संवार ले ।।

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