आसमान तकती सीपी

उम्र के एक मुक़ाम जिस पर आप बिलकुल अकेले होते है,
जाने पहचाने रोज़ मिलते से चेहरे,
फिर भी आप अकेले होते है...
खामोशी से करते है बातें और ख़ुद में ही उलझते सुलझते है आप,
और कई जोड़ी सवालियां निगाहों से रु बरु होते है....

वो उम्र होती है बरसो से टँगी अबूझ  पेंटिंग की तरह,
वक्ती धूल जिन पर चढ़ चुकी होती है, जाले लगे छतों से जुड़ी दीवारों की तरह बदरंग होते रंग से बेरंग....
 इंतजार करती है किसी पारखी नज़र का,मौन को समझ सके जो स्वयं भी निशब्द हो....

या फिर होती है उम्र वो,
किसी पानी की धार की तरह,
बिना शोर बहती नदी की तरह, शांत समंदर की तरह,
इंतजार करती है पूर्णिमा के चाँद का, लहरों के वेग को कर सके जो गतिमान तूफान सा....

 हाँ उम्र होती है ये आसमान तकती  सीपी की तरह, अमृत बून्द पी सके स्वाति नक्षत्र में और धर सके रूप बहुमूल्य मोती का....

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