उतरती सीढियां उम्र की

उतरती सीढ़ियां उम्र की, बुढ़ापे के दहलीज़ सी,
ज्यादा दूर नही पर मेनोपॉज की रफ़्तार सी....
उतरता सा यौवन और सिंदूरी माँग के किनारे चांदी के तार सी,
अधनींदें और बिना सुकून तकिये पर पलटती जैसे कोई रात सी ,
अगली सुबह आँखों के घेरे पर बढ़ती कालिमा से लाचार सी....
 लिपस्टिक में मुस्कुराते होंठो के किनारे अंग्रेजी में थोड़ा कम दिल दहलाते  "फाइन लाइन" सी,
चुपके से छिपा नहाने को ले जाते रसोई के किसी घरेलू उबटन की अन छिपे पैनी नजरों से, बचती पतली धार सी...

आईने के आगे आधुनिक परिधानों में भी बेरुखी से  ख़ुद को बेडौल दिखाते शरीर की आह सी,
पीछे से मुस्कुराते पति की नजरें  पैनी कटार सी....
सुबह की दौड़ती भागती उम्र, शाम होते होते ढलते सूरज की लाल आग सी,
और ना जला पाने की तपिश में स्वयं में ही सुलगती चिड़चिड़ी वाणी के अंदाज सी,
हर हफ्ते दो हफ्ते पर मल्टी विटामिनों और दर्दनिवारक गोलियों की मोहताज़ सी....

हाय कैसे कहूँ की मेरी उम्र है अब पैतालीस को भी पार सी,
कब बीती, कितनी तेज़ थी रफ़्तार, घड़ी कलेंडर महीने साल नहीं कुछ थी दरकार,

कठपुतली सी नाचती, रोती हँसती हँसाती मेरी उम्र ने, मुझ पर से ही मेरी जिंदगी सदके में वार दी ......

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