#2020 का सफ़र



उँगलियों पर दिन रह गए जो बस बीतने को बाकी है.....

छोड़ पीछे 2020 को, 

दरवाज़े पर खड़े दस्तक दे रहे 2021 के,,साथ नयी उम्मीद और आशाओं के ।


कुछ उत्साह है! और ढ़ेरो अवसाद भी!

कोई अनजाना सा डर है! और ढेरों सपने भी!!

भूलने को बहुत कुछ है इस जारी वर्ष की झोली में,, पर यादों का पिटारा लगभग खाली।

बीत रहा वर्ष जाने कहाँ से आते 'बखत'अपने संग अनचाहा मेहमान ले आया था,,,मेहमान दो दिन का ही भला! पर ये तो साल भर से ठहरा हुआ "भयानक दैत्य कोरोना वायरस रहा"


नया कुछ भी नही यहां इस पल! इस 'वायरस' पर बताने को!! 

फिर भी दानव के दांव से दिल डरा है आज भी ये समझाने को।


सोचती हूँ क्या भूलूँ क्या याद रखूँ....

पर क्योंकि माँ के दिए संस्कारो में जीती हूँ सर्वोत्तम गुण ये ख़ुद में हर रोज भरती हूँ....


नकारात्मकता में से सकारत्मकता ढूंढ निकालना!अपनी अभिव्यक्ति रखती हूँ!


'मथा'! मैंने जाते वर्ष को 'मन की मथानी' से!! और ढूंढ़ी ढेरों सकारात्मकता!!!

स्वच्छ नील गगन, विचरण करते पंछी और रात के सन्नाटे में काले दुप्पटे पर चमकते अनगिनत सितारे!

आंगन में चहचहाती गौरैया और कलकल करती निर्मल गङ्ग की धारा।


सीखा मैंने सीमित संसाधनों में जीना और सीमित व्यय से ही घर भी चलाना।

व्यर्थ की पेट्रोल फूँकती पर्यावरण दूषित करती यात्रा से ,कहीं बेहतर रहा,,,,घर में अपनों के संग फ्री फ्री फ्री ठहाके लगाना!


चार रोटियां घर की जब सेकी,, जाने क्यों ख्याल में कोई बाहर भूखा भी याद आया, और गुप्त दान का बारम्बार मन हो आया तब  से अब तक, हरसम्भव कर डाला किन्तु 'अब' से पहले किसी को कभी नही बताया।


दर्जनों हॉलीवुड बॉलीवुड एक्टर्स पर भारी पड़ गए असली हीरो 'कोरोना वारियर्स' जब, तब हीरो और एक्टर्स का फ़र्क़ समझ में आया।


नेता और अभिनेता का अंतर तब ही मुझको दिख पाया, जब सोनू सूद ने मदद को हाथ बढ़ाया।


इन सब से भी बढ़ कर एक और कटु सत्य मन को बहुत भाया!

जब चार-चार पुत्रों वाला पिता भी "सेवन लेयर पी पी ई " ओढ़ कोरोना डेड बॉडी के टैग के संग एम्बुलेंस में श्मशान तक की यात्रा पर जाता पाया!! 

मुखाग्नि पुत्र ही देगा ये भरम भी चकनाचूर हो गया जब निःसन्तानो को अंजानो से सहयोग, प्यार, तथा अंतिम संस्कार का भागी! 

 और संतानवती को उपेक्षित सा अस्पताल में छूटा पाया!!


ढेरों अवसाद के कई-कई क्षण मैं वर्षो-वर्षो जीती, पीछे छोड़ आयी,, तो अब ये जाता 2020 का वर्ष क्योकर मुझ पर हो भारी,,,


जाने कितने सुख मैं ढूंढ निकालूं....


 क्योंकि सीखा मैंने शीशे में दरार,, धागे की गांठ और मन की फ़ांस का नहीं कोई इलाज!

 नया सृजन और नई फ्रेम ही इसका निदान!!


तो दीजिये नई सोच नए विचार नई भावनाये आने वाले वर्ष को!

,बीते वर्ष की छलनी से छान कर!!


 सुखद रहे सफल रहे !नव वर्ष हर हाल में!!

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